SC: यदि अभियुक्त ने मुआवजा दे दिया तो चेक डिसऑनर का मामला शिकायतकर्ता की सहमति के बिना समझौता किया जा सकता है 

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सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि एक बार जब शिकायतकर्ता को डिसऑनर चेक राशि के खिलाफ आरोपी द्वारा मुआवजा दिया जाता है तो परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) के तहत अपराध के शमन के लिए शिकायतकर्ता की सहमति अनिवार्य नहीं है।

अमरलाल वी जमुनी और अन्य बनाम जेआईके इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य के फैसले पर भरोसा करके जस्टिस एएस बोपन्ना और सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने कहा कि NI Act की धारा 138 के तहत अपराधों के निपटारे में ‘सहमति’ अनिवार्य नहीं है।

कोर्ट ने एम/एस मीटर्स एंड इंस्ट्रूमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम कंचन मेहता में सुप्रीम कोर्ट के 2017 के फैसले का जिक्र करते हुए कहा, “यहां तक कि ‘सहमति’ के अभाव में भी अदालत NI Act की धारा 138 के मामलों में किसी आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही बंद कर सकती है, अगर आरोपी ने शिकायतकर्ता को मुआवजा दिया है।”

वर्तमान मामला NI Act की धारा 147 के तहत चेक डिसऑनर शिकायत के शमन से संबंधित है। आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को दी गई चेक राशि का पुनर्भुगतान करने के बावजूद शिकायतकर्ता ने मामले को निपटाने के लिए सहमति नहीं दी।

ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। NI Act की धारा 147 के तहत अपराधों को समझौता योग्य बनाती है।

NI Act की धारा 147 कहती है- “आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में निहित किसी भी बात के बावजूद, इस अधिनियम के तहत दंडनीय प्रत्येक अपराध समझौता योग्य होगा।”  अदालत ने कहा कि NI Act की धारा 147 के तहत कार्यवाही बंद करने से पहले शिकायतकर्ता की सहमति को अनिवार्य रूप से नोट करना अदालत के लिए बाध्य नहीं है।

अदालत ने जेआईके इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले का हवाला दिया, जहां यह माना गया कि “NI Act की धारा 147 में गैर-अस्थिर खंड के मद्देनजर, जो विशेष कानून है, धारा 320 में समझौता करने वाले व्यक्ति की सहमति की आवश्यकता है। NI Act के तहत किसी अपराध के शमन के मामले में संहिता की आवश्यकता नहीं है।

अदालत ने कहा – “फिर भी इस विशेष मामले में भले ही शिकायतकर्ता को आरोपी द्वारा उचित मुआवजा दिया गया हो। फिर भी शिकायतकर्ता अपराध के समझौते के लिए सहमत नहीं है, अदालतें शिकायतकर्ता को मामले के समझौते के लिए ‘सहमति’ देने के लिए बाध्य नहीं कर सकती हैं।”

उपरोक्त टिप्पणी को देखते हुए अदालत ने यह देखते हुए कि आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को लोन राशि पहले ही चुका दी गई थी, NI Act के तहत आरोपी को दायित्व से मुक्त कर दिया।

अदालत ने आगे कहा– “यह भी सच है कि केवल राशि के पुनर्भुगतान का मतलब यह नहीं हो सकता कि अपीलकर्ता NI Act की धारा 138 के तहत आपराधिक देनदारियों से मुक्त हो गया। लेकिन इस मामले में कुछ अजीबोगरीब तथ्य भी हैं। वर्तमान मामले में अपीलकर्ता जमानत पर रिहा होने से पहले ही 1 वर्ष से अधिक समय तक जेल में रह चुका है। उसने शिकायतकर्ता को मुआवजा भी दिया। इसके अलावा, दिनांक 08.08.2023 के आदेश के अनुपालन में अपीलकर्ता ने 10 लाख रुपये की अतिरिक्त राशि जमा की है। निचली अपीलीय अदालत के समक्ष अपील की कार्यवाही को लंबित रखने का अब कोई उद्देश्य नहीं है।”

उपरोक्त टिप्पणी को देखते हुए अदालत ने यह देखते हुए कि आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को लोन राशि पहले ही चुका दी गई थी, NI Act के तहत आरोपी को दायित्व से मुक्त कर दिया तदनुसार, अपील की अनुमति दी गई।

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