छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विश्वविख्यात भगवान शिवलिंग की प्रमुख विशेषताएं
लक्ष्मण ने की थी लक्ष्मेश्वर मंदिर की स्थापना
हरिमोहन तिवारी
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर खरौद में स्थित है, शिवरीनारायण से तीन किमी.की दूरी पर खरौद नगर स्थित है यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित कला केन्द्रों में से एक है और मोक्षदायी नगर माने जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है.
ब्रह्म हत्या से छुटकारा पाने
ऐसा माना जाता है कि यहां रामायण कालीन शबरी उद्घार और लंका विजय के निमित लक्ष्मण ने खर और दूषण के वध के पश्चात ब्रह्म हत्या से छुटकारा पाने लक्ष्मणेश्वर महादेव की स्थापना की थी प्राचीन काल के शिवलिंग की मान्यता इतनी है कि खरौद को छत्तीसगढ़ का काशी कहा जाता है। यह मंदिर संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग से संरक्षित है.
मंदिर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा
यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख र्स्थित है, मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है,इस दीवार के अंदर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर 48 फीट ऊंचा और 30 फीट गोलाई लिए मंदिर स्थित है.
शिवलिंग की प्रमुख है विशेषता
मंदिर के गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है, इस शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है, मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। लक्ष्मण ने खर दूषण के वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से बचने इसकी स्थापना लक्ष्मण ने की थी। इसलिए इसे लक्ष्मेश्वर महादेव भी कहा जाता है.
इसमें एक लाख छिद्र हैं, पातालगामी लक्ष्य छिद्र
एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र हैं जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है, इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका संबंध है,, इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है, इसे अक्षय कुंड कहते हैं।
स्वयंभू लक्ष्यलिंग के आस पास जलहरी बनी है..
मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं, छत्तीसगढ़ में इस नगर की काशी के समान मान्यता है, कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असुरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा है , शिवरीनारायण से तीन किमी की दूरी पर खरौद नगर स्थित है, यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित कला केन्द्रों में से एक है और मोक्षदायी नगर माने जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है.
शिलालेख
मंदिर के दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है, दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अतः इसे पढ़ा नहीं जा सकता उसके अनुसार इस लेख में आठवीं शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है, मंदिर के बाएं भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है, इसमें 44 श्लोक हैं, चन्द्रवंशी हैहयवंश में रतनपुर के राजाओं का जन्म हुआ था,इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है.
काशी के नाम से विख्यात है मंदिर
छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विख्यात है यह मंदिर लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू शिवलिंग भी कहा जाता है, खरौद छत्तीसगढ़ के काशी के नाम से विख्यात है.
राम वन गमन परिपथ में स्थान दिया गया है
ऐसी मान्यता है कि रामायण कालीन शबरी उद्घार और लंका विजय के पहले लक्ष्मण ने यहां खर और दूषण के वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने महादेव की स्थापना की थी. जिसे लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.
ब्रह्महत्या दोष का होता है निवारण
मान्यता अनुसार श्रीराम ने खर और दूषण का यहीं पर वध किया था इसीलिए इस जगह का नाम खरौद है, कहा जाता हैं कि यहां पूजा करने से ब्रह्महत्या के दोष का भी निवारण हो जाता है. कहते हैं कि रावण का वध करने के बाद लक्ष्मणजी ने भगवान राम से ही इस मंदिर की स्थापना करवाई थी, यह भी कहते हैं कि लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग की स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी
आठवीं शताब्दी में हुआ मंदिर का निर्माण
पौराणिक कथा के अनुसार शिवजी को जल अर्पित करने के लिए लक्ष्मण जी पवित्र स्थानों से जल लेने गए थे. एक बार जब वे आ रहे थे तब उनका स्वास्थ्य खराब हो गया कहते हैं कि शिवजी ने बीमार होने पर लक्ष्मण जी को सपने में दर्शन दिए और इस शिवलिंग की पूजा करने को कहा. पूजा करने से लक्ष्मणजी स्वस्थ हो गए. तभी से इसका नाम लक्ष्मणेश्वर है.
मंदिर के प्राचीन शिलालेख अनुसार आठवीं शताब्दी के राजा खड्गदेव ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया था, यह भी उल्लेख है, कि मंदिर का निर्माण पाण्डु वंश के संस्थापक इंद्रबल के पुत्र ईसानदेव ने करवाया था.